شنبه 31 ارديبهشت 1384-0:0

مازندراني سرود

عيسي رستمي خليلي (فيروزجايي)


با سلام و عرض تشکر از سايت زيباي شما که ما را دور از مازندرانيم با خبر ها و مطالب زيباي خود، در حال و هواي ديار هميشه سبز و محروم مازندران قرار مي دهيد. مطلبي که براي شما مي فرستم سروده ي عيسي رستمي خليلي دانشجو سال دوم روانشناسي دانشگاه علامه طبا طبايي مي باشد. او که در دامن سر سبز و زيباي منطقه بند پي بابل بزرگ شده بود و آن روح لطيفش نتوانست در چهار ديواري سيماني خوابگاه و هواي دود آلود تهران تحمل کند و باعث شد تا عقده هاي دلش را به صورت اشعار مازندراني بيان کند.

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سادُ بنايِ قديم اون دور و زمان قديمي ساد و بِنا ديگري بيه/ بدون قهر و کينه اي شادي و دلگرمي بيه/

 بدون غَم و غِرصه اي دوران طِلايي بيه/ با رَسم و رُسوم ساده اي شور و محشر به پايي بيه/

 اَتا مِْنزِلِ گوشه و کِنار وِشونِ سِرِ زندگي بيه/ چَل ر ِسي و کِرچالِ کار زنان سر گرمي بيه/

 اسبْ پالونِ مِنزلِ کِنار وَچونِ اسباب بازي بيه/ جَل ِپشته و وَلْگ و واشار گوهون خِراکي بيه /

کَچه و کِتْرا و خِردِ خارْ سرويسِ غِذا خوري بيه/ چوبي کَلِّزِ دَسِه دار پار چهاي آب خوري بيه/

 همه يِ چيزِ اون دوره تازه و طبيعي بيه/ چِکْ سَري نونِ تَشِ سَرْ نون هاي بربري بيه/

 کِلوا نونِ لاقِلي سَر پيتزاي امروزي بيه/ کَتي و تِفايِ تَشِ سَر گوشتهاي يَخِچالي بيه/

 کِنِسْ شيشِ بي شاخ و پَر سيخِ کباب خوري بيه/ خِشْکِ هيمه ي تَشِ بَلْ گاز خِراک پَزي بيه/

 کِلِنِ اويِ تازه سَر صابون سَر شويي بيه /خِنِه هاي سَرْ لَدِ پَر خِنِه ، کَلْ به کَلي بيه/

 مِتِکاي دَرون کِرْکِ پَرْ تشکِ ترکمني بيه/ چوبي چرتکه، ديکون سَر ماشينِ حسابي بيه/

 خِشْکِ مَلِجِ تَشِ وَرْ بر قهاي خانگي بيه/ دار کاشِم و اِفرايِ پَر سيم هاي ظرف شويي بيه /

سورِ کِتِنِّ چِشْمه ي سَر ماشينِِ لباسشويي بيه/ شاب و وِجِب و گَز و زَر واحد هاي متري بيه/

 تِلارِِ دور و گِردِ وَر طَلْم و کَتِلْ دَچي بيه/ قِرا اسب و غَزِلْ قاطر ماشين هاي باري بيه/

 شير دار گويِ پر چرب و بَر وِشونِ دِلِخِشي بيه/ خالِکِ گوگ، پِه کِلِه وَر گوگ و آدم هه اي بيه/

 رَسِنْ سَري گوشتي سَر وِشونِ جيف خَرجي بيه /مِلک و مال و مِرْسِ پَر ثِروت و دارايي بيه/

 سِرخِ طِلايِ کِلي سَر اذان گوي صِوي بيه /خِشْ سَرِجونکا و وَنْگِ کَر ْ اِفْتِخار و سَر افرازي بيه/

 يِلاق و پِرتاسِ کوي پَر سَفِر هاي داخلي بيه/ کاله زمين ويشه سَر زمينهاي آبي بيه/

 شاهِ بينج هاي شِتال پَر برنج کشاورزي بيه /هَي و هوي نِفارِ سَر آفت رَمِنْدِگي بيه/

 وِرْزايِ عَقِب ازّالِ پَر تيلر کشاورزي بيه/ رَونْ اسب و آرومِ قاطر کمباين خرمن کوبي بيه/

 بينج و چَکو هوايِ سَر با باد ها جدايي بيه /کَمِلْ قج هم با ليفا سَر يکجا جمع آوري بيه/

 با آدمهايِ شيرِ نَر کَمِلْ بَسته بندي بيه/ بينج کيسه ، اودَنْگِ سَر بار گيري و خالي بيه/

 چَلِ سَنگ اويِ دَنْگِ سَر دستگاه شاليکوبي بيه/ لَيلي و اَميري بَخونِسِّن نشانه ي خوانندگي بيه/

 کَتولي و نَجْما سر هِدائِن سِپيده جانِ امروزي بيه/ کَله وَنْگ و اويا هِدائِن اِرتباط بيسيمي بيه/

 پوسِّ کِلا رويِ سَر دَيِّن نِشانِ مَردانگي بيه/ اِحترام والدين داشتِن اصول تر بيتي بيه/

 بي چَمِ دارِ لو بوردِن کار خيلي عالي بيه /کَلْ کِشْتي و بِمْ بَپِّرِسِّن فيلمهاي شو و سي دي بيه/

 جونِکايِ سَرِ بَهيتِن فيلم سينمايي بيه /خالِکْ وَرِيِ کا بَکِرْدِنْ برنامه کودکي بيه/

 سگ لوء و تَشِ دي نِشان آبادي بيه/ قَران و هزار و شاهي واحد هاي پولي بيه /

داز و تور و چوبِ دستي سِلاح گالشي بيه /کِنِس و هَلي و خِرمِني ميوه هاي پاييزي بيه/

 کِنِس تِرْشي و دِشو پَزي رسومات هر سالي بيه/ هَلي کِک و هَلي تِرشي سِرکه و يار مَسي بيه/

 وَنوشه و زَردِ تِتي گلهاي بهاري بيه/ اَتا گِرِفْتاري شون زِمِسْتونِ سَرْدي بيه/

 وَرْف و يَخ که ايمو بيرون گو چِرا نا دياري بيه/ جَلِ پِشْتِه و وَلْگ و واشون غذاي کُمِکي بيه/

 با اين کار ها دَر اُون زَمون زِمِستونِ سِپِري بيه/ باز که اِمو فَصْلِ بِهار طبيعت ، تازه اي بيه/

 کَلو و کِنِس و هَلي دار پُرْ اَز چَرْدِه و تِتي بيه/ گالِش دِلا بي قِرا ر که راهي کوهي بيه /

از خِشالي ناشته قِرار لب خِنّه خِشالي بيه/ يابورِ ها کِرده وِ بار سوي يِلاق راهي بيه/

 بَنِّمْ دوئِه اسبِ اوسار که رسم گالِشي بيه/ سَر گالشْ سوارِ کار راهدار جِلويي بيه /

مِنْزِل که کِردِنه تِلار مِنْزِلِ يِک شَبي بيه/ نِصفه راه گيتِنه چاشْتِ بار غٍذاي مُوقَتي بيه/

 مِنْ کِرْدِنه چَنْد تا تِلار مِسافت طولاني بيه/ با خَسِّه تَن شينه کِنار يِلاق که دياري بيه/

 اتا بِلاي اُون دور و زَمون زِلزِله و گو ناخِشي بيه/ گل ختميم و گل گاوزوون دِواي مر يضي بيه /

اَلِرزي و تيرنگ زِوون سَبزي خوردني بيه/ کِلاب پَر و بِِزِ خامُ خون مِلِهِمِ بَسوتي بيه/

 کِشت و جوله دَر اون زمون ابزار گودوشي بيه /دِمس په دَس اغوُز و نون هِمراه ساندويچي بيه/

 بَتِجِ اسب گالِشون ماشين سواري بيه/ تِمام عُبور ومُرور وِشون با اسب يا پياده روي بيه/

 کدخدايِ سِرِ دَر اون زَمون پاستگاه انتظامي بيه/ پَروَندۀ مالباخته گون تَفتيش و بازرسي بيه /

جِنايت هاي آدمون در اونجه بررسي بيه/ حکم جلب يا تنبيهِ شون از کد خدا جاري بيه/

 جشن هاي عروسي وِشون هَمِشْ مسخره بازي بيه /دِسِر عروسي شون گوشت و کباب خوري بيه/

 خَرِک چي کا دَر اون ميون اُور گهاي عروسي بيه/ عاروسْ ماشين نِماشون اسب هاي يِرقه اي بيه /

مِلّا خِنِه در اون زَمون محل تحصيلي بيه /قرآن سِواد اِمو بيرون مَدْرِک ليسانسي بيه /

زبان تِکَلُّـــــــــمِ شون يِکْسَره محلي بيه/ ما هاي فصل هاي وِشون ما هاي طبري بيه /

آهاي آدمهاي اين زمون اينا رسم قديمي بيه/ اسا که در اين دور و زمون عوض و ديگري بَيِّه/

 زِندگانيِ آدمــــــــــــــون هَمِش که ماشيني بَيِّه/ ماشيني کِرْکِ نِسْبه جون مرغ هاي خانگي بَيِّه/

 اسراييلي گويِ ناتِوُون جايِ گويِ معمولي بَيِّه/ تِرْشِ گوجه و بادمجون غِذاي همگي بَيِّه/

 لوبيا و ماهيِ تُن وِ هَمْ يِه غذاي بَيِّه/ غِذاي مصنوعي مون بلاي همگي بَيِّه /

آهاي بِرار و خاخِرون رسم قديم عالي بيه /زِ صُلح و صِفا و دِلْخِشي جاي همه هم خالي بيه/

 گالِشي و لَتار کَشي کار هميشگي بيه/ تِلِّم زني و گو دوشي نِشان برتري بيه /

کِتْرا و خِردا خار تاشي وِ شغلِ حِرْفه اي بيه/ وِشون تَن رَخت و لِباس پَشْکارِ گِسْبِنِ مي بيه/

 کُمُدِ اسباب و اثاث صندقچهِ چوبي بيه/ چَرْمِ جِرِبِ لينگِ تِکْ کفش هاي قيمتي بيه/

 پيدِ گِلِج و لَمه تَک وِ لحاف و قالي بيه/ شير نون و بِچا پِلا کَتِکْ صبحانۀ صِوايي بيه/

 گالِشون قوت و غِذا روغن حِيواني بيه/ شير ونون و گِرْ ماسْ پِلا غِذايِ هميشگي بيه /

گالِشونِ مِنْزِلِ سَرْ دو و کَره بَشِنّي بيه/ وِشونِ تِلِمِسادِ سَر دويِ کيسه دياري بيه/

 هيچ خبر هايي از پنير نَهيه صحبت از ماسِّ سَر و شير سَري بيه/ اِسا گالِشون رِ دو و کره آرزوي هميشگي بيه تقصير گالِشون هم نيه /روز گار همين جوري بيه تيرِ تمدن و تعصب جان پاک آدمي بيه.

 عيسي رستمي خليلي (فيروزجايي) 
فرستنده:عيسي اکبري
 (akbari.isa@gmail.com)